नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र में क्रांति लाएगी। केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री गिरिराज सिंह ने यहाँ मंगलवार, 30 जून 2020 को प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के संचालन संबंधी दिशा-निर्देशों (पीएमएमएसवाई) को जारी करते हुए यह बात कही। उन्होंने मत्स्यपालन और जलीय कृषि के न्यूजलेटर 'मत्स्य सम्पदा' के पहले संस्करण का भी लोकार्पण किया। इस अवसर पर प्रताप चन्द्र सारंगी, राज्य मंत्री मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय तथा डॉ. राजीव रंजन, सचिव, मत्स्यपालन विभाग के साथ ही मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारी भी सम्मिलित हुए।
गिरिराज सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 15 मई, 2020 को मत्स्यपालन क्षेत्र के लिए अवसंरचना को मजबूत करने सहित कई अहम उपायों के अंतर्गत प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के माध्यम से मछुआरों के लिए 20,000 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी। बाद में 20 मई, 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 20,005 करोड़ रुपये के प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के क्रियान्वयन को अनुमति प्रदान की थी।
श्री सिंह ने कहा कि इस योजना के तहत केन्द्र सरकार का उद्देश्य समुद्री और अंतर्देशीय (इनलैंड) मछलीपालन के एकीकृत, सतत और समावेशी विकास करना है। समुद्री, अंतर्देशीय मछलीपालन और एक्वाकल्चर से जुड़ी गतिविधियों के लिए 11,005 करोड़ रुपये तथा आधारभूत ढांचा जैसे मछली पकडऩे के लिए बंदरगाहों (फिशिंग हार्बर्स), शीत भंडार, बाजार आदि के लिए 9,000 करोड़ रुपये की धनराशि का प्रावधान किया गया है।
उन्होंने बताया कि योजना के तहत केज कल्चर, समुद्री शैवाल की खेती, सजावटी मछलियों के साथ नए मछली पकडऩे के जहाज, ट्रेसेलिबिलिटी (पता लगाने), प्रयोगशाला नेटवर्क आदि को बढ़ावा दिया जाएगा। मछुआरों को प्रतिबंधित समय (जिस अवधि में मछली पकडऩे की अनुमति नहीं होती है) में सहायता प्रदान करने, व्यक्तिगत और नौका बीमा का प्रावधान किया गया है।
केंद्रीय मत्स्यपालन मंत्री ने बताया कि 100 विभिन्न गतिविधियों को समाहित करते हुये पीएमएमएसवाई मत्स्यपालन क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है। इससे 5 साल में 70 लाख टन अतिरिक्त मछली उत्पादन होगा। 55 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा और निर्यात दोगुना होकर 1,00,000 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच जाएगा। इसमें अंतर्देशीय, हिमालयी राज्यों, पूर्वोत्तर और आकांक्षी जिलों पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा।
प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के संचालन संबंधी दिशा-निर्देशों को जारी करते हुए, गिरिराज सिंह ने मात्स्यिकी और जलीय कृषि की विकास यात्रा में पीएमएमएसवाई के शुभारंभ को सबसे महत्वपूर्ण क्षण बताया। उन्होंने आगे कहा कि मात्स्यिकी में मूल्य शृंखला के साथ विभिन्न प्रोत्साहनों के माध्यम से पीएमएमएसवाई, मात्स्यिकी और जलीय कृषि के क्षेत्र में क्रांति लाएगी और इसे अगले स्तर तक ले जाएगी। बहुत कम समय में पीएमएमएसवाई के संचालन दिशा-निर्देशों को तेज गति के साथ पूरा करने में मत्स्यपालन विभाग के प्रयासों की सराहना करते हुए, मंत्री ने आशा व्यक्त की कि संचालन संबंधी दिशा-निर्देश योजना के त्वरित कार्यान्वयन में राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों की सहायता करेंगे।
गिरिराज सिंह ने न्यूजलेटर 'मत्स्य सम्पदा' के पहले संस्करण का लोकार्पण करते हुए कहा कि यह मत्स्यपालन विभाग के प्रयासों का एक परिणाम है जिसके द्वारा संचार के विभिन्न साधनों के माध्यम से हितधारकों विशेष रूप से मछुआरों और मत्स्य पालकों तक पहुँचा जा सकेगा और उन्हें मत्स्यपालन और जलीय कृषि के क्षेत्र की नवीनतम घटनाओं के संदर्भ में जानकारी प्रदान की जा सकेगी।
उन्होंने कहा कि मात्स्यिकी क्षेत्र के विकास में सरकार द्वारा की जा रही पहलों के साथ ही सरकारी एवं निजी, दोनों क्षेत्र जो अच्छा काम कर रहे हैं, उन्हें सूचित-प्रसारित करने के लिये इस न्यूजलेटर को जारी करना बहुत ही सामयिक और आवश्यक है। यह न्यूजलेटर देश भर में हितधारकों, विशेष रूप से मछुआरों, मछलीपालक किसानों, युवाओं और उद्यमियों के बीच सूचना के प्रसार के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में काम करेगा, उनकी सहायता करेगा और उनके व्यापार को सुविधाजनक बनायेगा। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह न्यूजलेटर संचार के लिए एक अद्भुत मंच साबित होगा।
पीएमएमएसवाई की सोच और पहल को प्रसारित करने के साथ ही, इसके लक्ष्यों तक पहुँचने में सामूहिक प्रयास की परिकल्पना में जनता की राय को जानने की दिशा में इस न्यूजलेटर 'मत्स्य सम्पदा' के एक प्रभावी साधन और मंच के रूप में कार्य करने की संभावना है। यह मात्स्यिकी के क्षेत्रों में मछुआरों, मत्स्य पालकों और उद्यमियों द्वारा अपनाई गई सर्वोत्तम प्रथाओं और नवीनतम गतिविधियों के साथ ही उनकी सफलता की कहानियों का प्रदर्शन करने में भी सहायक होगा। इसे वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही से शुरू करते हुए तिमाही आधार पर प्रकाशित किया जाएगा।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के बारे में
कुल 20,050 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली यह योजना, केन्द्रीय योजना और केन्द्र प्रायोजित योजना के रूप में लागू की जाएगी। इसमें केन्द्र की हिस्सेदारी 9,407 करोड़ रुपये; राज्यों की हिस्सेदारी 4,880 करोड़ रुपये तथा लाभार्थियों की हिस्सेदारी 5,763 करोड़ रुपये होगी। इस योजना को वित्त वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक पाँच वर्षों की अवधि में लागू किया जाएगा। योजना के दो घटक होंगे। पहला केन्द्रीय योजना और दूसरा केन्द्र प्रायोजित योजना। केन्द्रीय योजना के दो वर्ग होंगे एक लाभार्थी वर्ग और दूसरा गैर लाभार्थी वर्ग। केन्द्र प्रायोजित योजना को तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है:- उत्पादन और उत्पादकता को प्रोत्साहन, अवसंरचना और उत्पादन बाद प्रबंधन तथा मत्स्यपालन प्रबंधन और नियामक फ्रेमवर्क।
योजना का वित्त पोषण
केन्द्रीय परियोजना के लिए 100 प्रतिशत वित्तीय जरुरतों की पूर्ति केन्द्र की ओर की जाएगी। इसमें लाभार्थी वर्ग से जुड़ी गतिविधियों को चलाने का काम पूरी तरह से राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड सहित केन्द्र सरकार का होगा। इसमें सामान्य लाभार्थियों वाली परियोजना का 40 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जाति और जनजाति तथा महिलाओं से जुड़ी परियोजना का 60 प्रतिषण वित्त पोषण केन्द्र सरकार करेगी।
केन्द्र प्रायोजित योजना का वित्त पोषण
इस योजना के तहत गैर लाभार्थियों से जुड़ी गतिविधियों का पूरा खर्च राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश की सरकारें मिलकर उठाएंगी।
इसके तहत पूर्वोत्तर तथा हिमालयी क्षेत्र वाले राज्यों में लागू की जाने वाली ऐसी परियोजना का 90 प्रतिशत खर्च केन्द्र और 10 प्रतिशत खर्च राज्य सरकारें वहन करेंगी।
अन्य राज्यों के मामले में केन्द्र और संबधित राज्यों की हिस्सेदारी क्रमश: 60 और 40 प्रतिशत होगी।
केन्द्र शासित प्रदेशों में लागू की जाने वाली ऐसी योजनाओं का सौ प्रतिशत वित्त पोषण केन्द्र की ओर से किया जाएगा।
गैर लाभार्थी वर्ग की योजना का वित्त पोषण
इस वर्ग की योजना का वित्त पोषण पूरी तरह से संबधित राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की ओर से किया जाएगा। इसमें सामान्य श्रेणी वाली परियोजना में सरकार, राज्य और केन्द्रशासित प्रदेशों की कुल हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी जबकि महिलाओं,अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग से जुडी परियोजना के लिए सरकार की ओर से 60 प्रतिशत की आर्थिक मदद दी जाएगी।
पूर्वोत्तर तथा हिमालयी क्षेत्र के राज्यों में ऐसी परियोजनाओं के लिए सरकार की ओर से 90 प्रतिशत वित्त पोषण किया जाएगा जबकि राज्यों की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत होगी।
अन्य राज्यों के लिए यह क्रमश: 60 और 40 प्रतिशत होगी
केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए केन्द्र की ओर से 100 प्रतिशत मदद दी जाएगी।