अरहर और उड़द का एमएसपी 6,000 रुपये प्रति क्विंटल करने की कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने अनुशंसा की


नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों की समिति जल्द ही आगामी खरीफ सत्र 2020 के लिए विभिन्न फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा कर सकती है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग के तहत कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने केन्द्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने केन्द्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में सामान्य धान का एमएसपी खरीफ 2019 के 1,815 रुपये प्रति क्विंटल में 53 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी के साथ 1,868 रुपये प्रति क्विंटल करने अनुशंसा की है। इसी प्रकार से धान ग्रेड ए का एमएसपी 1,835 रु. से 53 रु. बढ़ाकर 1,888 रु. प्रति क्विंटल करने, बाजरा का एमएसपी 2,000 रु. से 150 रु. बढ़ाकर 2,150 रु. प्रति क्विंटल करने, मक्का का एमएसपी 1,760 रु. से 90 रु. बढ़ाकर 2,150 रु. प्रति क्विंटल करने, अरहर का एमएसपी 5,800 रु. से 200 रु. बढ़ाकर 6,000 रु. प्रति क्विंटल करने, मूँग का एमएसपी 7,050 रु. से 146 रु. बढ़ाकर 7,196 रु. प्रति क्विंटल करने, उड़द का एमएसपी 5,700 रु. से 300 रु. बढ़ाकर 6,000 रु. प्रति क्विंटल करने, कपास मध्यम रेशा का एमएसपी 5,255 रु. से 260 रु. बढ़ाकर 5,515 रु. प्रति क्विंटल करने, कपास लंबा रेशा का एमएसपी 5,550 रु. से 275 रु. बढ़ाकर 5,825 रु. प्रति क्विंटल करने, मूँगफली का एमएसपी 5,090 रु. से 185 रु. बढ़ाकर 5,275 रु. प्रति क्विंटल करने, सोयाबीन का एमएसपी 3,710 रु. से 170 रु. बढ़ाकर 3,880 रु. प्रति क्विंटल करने और रामतिल का एमएसपी 5,940 रु. से 755 रु. बढ़ाकर 6,695 रुपये प्रति क्विंटल करने की अनुशंसा की है। खरीफ 2019 की तुलना में इस बार सर्वाधिक वृद्धि रामतिल में 755 रुपये की गई है।
प्राय: यह देखा गया है कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की अनुशंसाओं को केन्द्र सरकार मान्य कर लेती है। इसलिए आयोग द्वारा अनुशंसित एमएसपी खरीफ 2020 की फसलों के लिए निर्णायक ही है। खरीफ फसलों में एमएसपी में बढ़ोतरी से केन्द्र सरकार की भविष्य की रणनीति के बारे में भी जानकारी मिल जाती है। इस बार फिर अरहर, मूँग और उड़द में की गई बढ़ोतरी से स्पष्ट है कि सरकार दलहन का बफर स्टॉक में वृद्धि करने या दलहन की घरेलू पूर्ति को बढ़ाने व दलहन के आयात को कम करना चाहती है। 26 मई 2014 को भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी सरकार ने पहली बार खरीफ 2014 की फसलों का एमएसपी निर्धारित किया था। तब से लेकर खरीफ 2020 तक अर्थात् 7 साल में दलहनी फसलों में मूँग 4,500 रुपये प्रति क्विंटल (खरीफ 2013, तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में) से 2,596 रुपये से बढ़कर 7,196 रु. प्रति क्विंटल, अरहर और उड़द दोनों 4,300 रु. से 1,650 रु. बढ़कर 6,000 रुपये प्रति क्विंटल पहुँच गई है। भारत सरकार दलहन में आत्मनिर्भर बनने के बहुत करीब है। गुरुवार, 16 अप्रैल 2020 को कृषि मंत्रालय, भारत सरकार ने खरीफ कॉन्फ्रेंस 2020 में खरीफ 2020 (वर्षा) सत्र का 14 करोड़ 99.2 लाख टन का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके पहले 18 फरवरी 2020 को मंत्रालय द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, फसल वर्ष 2019-20 (जुलाई-जून) में खाद्यान्न उत्पादन 29 करोड़ 19.5 लाख टन रहने का अनुमान लगाया है, जिसे अब तक का सर्वाधिक उत्पादन बतलाया जा रहा है। इस दौरान खरीफ की दालों का कुल उत्पादन 79.20 लाख टन होने का अनुमान है जिसमें से तुअर का 36.90 लाख टन, उड़द का 17.20 लाख टन, मूँग का 17.70 लाख टन व अन्य खरीफ दलहन फसल 7.30 लाख टन शामिल हैं।
धान में सिर्फ 53 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि इस ओर संकेत करती है कि सरकार के पास चावल का पर्याप्त भंडार है।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग मूल्य निर्धारित करने के लिए देश के सभी राज्यों के साथ समूह में क्षेत्रीय बैठकें आयोजित करता है जिसमें किसान, किसान संगठनों के प्रतिनिधि, भारतीय कृषि अनुसंधान से पुरुस्कृत किसानों, केन्द्रीय और राज्य सरकारों के अधिकारियों, सरकारी खरीद, फसल कटाई के बाद कृषि वस्तुओं के प्रसंस्करण और विपणन के प्रबंधन में शामिल विभिन्न  एजेंसियों/ संगठनों/ कम्पनियों के प्रतिनिधियों और अन्य हितधारकों से चर्चा करने के बाद ही इस रिपोर्ट को तैयार करता है।
2014 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नरेन्द्र मोदी ने स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसाओं के अनुरूप किसानों को उनकी फसल लागत से डेढ़ गुना अधिक एमएसपी घोषित करने का वचन दिया था। केन्द्र सरकार का दावा है कि वह फसल लागत से डेढ़ गुना अधिक एमएसपी घोषित कर रही है।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग मूल्य, प्रचालन लागत और स्थिर लागत जोड़कर कुल लागत की गणना करता है। प्रचालन लागत में ए2 खर्च अर्थात् मानव श्रम, बैल श्रम, मशीन श्रम, कृषि उपकरणों का किराया, बीज, उर्वरक, खाद, कीटनाशक, सिंचाई प्रभार, विद्युत, कृषि ट्रैक्टर स्नेहकों अर्थात् लुबरिकेन्ट, पशु चारा, डीजल, कार्यशील पूँजी पर ब्याज व अन्य खर्चें शामिल किए जाते हैं। इसमें फिर एफएल अर्थात् फार्म लेबर यानी स्वयं कृषक और उसके परिवार का श्रम जोड़ा जाता है। इसके बाद इसमें स्थिर लागत वाले खर्चें जैसे स्वामित्व वाली भूमि का किराया मूल्य या पट्टे पर ली गई भूमि का किराया, भू राजस्व उपकर व कर, उपकरणों व कृषि भवनों पर मूल्य हास, निश्चित पूँजी पर ब्याज यह सब जोड़कर विभिन्न फसलों की राज्यवार कुल लागत अर्थात् सी2 का निर्धारण किया जाता है। सी2 पर 50 प्रतिशत लाभ जोड़कर एमएसपी घोषित करने की परम्परा का दावा मोदी सरकार करती है।
हालांकि किसान संगठन सदैव केन्द्र सरकार से इस बात को लेकर अपनी नाराजगी जताते रहते हैं कि किसी भी केन्द्र सरकार ने उनकी फसल लागत के अनुरूप एमएसपी की कभी भी घोषणा नहीं की।