श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगडीजी का जीवन दर्शन एवं राष्ट्र के लिए वैचारिक योगदान
भोपाल। महामानव श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के जन्मशताब्दी के अवसर पर जन मात्र की जानकारी एवं अभिज्ञान वृद्धि के लिए उनके जीवन वृत्त पर कुछ विचार बिंदु प्रेषित हैं। अदेय दत्तोपंत जी के जीवन को तीन आयामों में बाँटकर देखना सुविधाजनक होगा इसलिए तीन शीर्षकों में इन बिन्दुओं को लिखा गया है:- 1. सामान्य जीवन वृत, 2. कुशल संगठक आरै 3. राष्ट्र को वैचारिक योगदान।
1. सामान्य जीवन वृत:- श्री ठेंगड़ी जी महामानव, तत्व चिंतक, भविष्य दृष्टा, अजात शत्रु, ओजस्वी वक्ता, साहित्य सृजक, निरहंकारी, सहजता, विनम्रता, मिलनसार तथा कार्यकर्ताओं की सतत चिन्ता करने वाले थे। उनका जन्म महाराष्ट्र प्रांत के वर्धा जिले के आर्वी ग्राम में 10 नवम्बर 1920 को हुआ था। उनकी माता का नाम श्रीमती जानकी देवी और पिता का नाम श्री बापूराव (दाजीबा) ठेंगड़ी जी था।
उन्हें महामानव बनाने में योगदान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक पूजनीय श्री गुरु जी की माता वात्सल्य की प्रतिमूर्ति, भक्तिमति माता जिन्होंने उन्हें व्यवहारिक शिक्षा प्रदान की। डॉ. बाबा साहब (भीमराव) अम्बेडकर जी आदि।
श्री ठेंगड़ीजी बाल्यकाल से ही सामाजिक गतिविधियों से जुड़े रहे। यथा
1. आयु के 12 वे वर्ष में महात्मा गाँधी जी के अहिंसा आंदोलन में शामिल हुए।
2. आर्वी वानर सेना तालुका समिति (1935) के अध्यक्ष रहे,
3. नगरपालिका हाईस्कूल आर्वी विद्यार्थी संघ के अध्यक्ष रहे,
4. नगरपालिका हाईस्कूल विद्यालय के गरीब छात्र फण्ड समिति (1935-36) के सचिव रहे,
5. आर्वी गोवारी झुग्गी झोपड़ी मंडल के संगठक रहे,
6. वर्ष 1936 में श्री बापूराव पालघीकर जी के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े।
7. प्रारम्भिक शिक्षा आर्वी (वर्धा) से। उसके बाद नागपुर से बी.ए, एल.एल.बी. की पढ़ाई प्रथम श्रेणी में पूर्ण की।
भाषा ज्ञान:- हिंदी, संस्कृत, मराठी, अंग्रेजी, मलयालम एवं बंगला।
8. वर्ष 1942 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने एवं केरल से प्रचारक जीवन प्रारम्भ कर अंतिम क्षण 2004 तक।
वर्ष 1948-1949 असम एवं बंगाल के प्रांत प्रचारक।
वर्ष 1950-1951 के बीच मध्य प्रदेश ईटेक के महामंत्री के नाते काम करते समय उन्हें अनुभूति हुई कि ट्रेड यूनियन क्षेत्र में राष्ट्रीय विचारों का अभाव है। उनके नारों से भी राष्ट्रीयता का अभाव एवं वर्ग संघर्ष का भाव प्रकट होता था। इन बातों को ध्यान में रखते हुए धनात्मक भाव के साथ 'देश के हित में करेंगे काम, काम का लेंगे पूरा दाम' तथा 'मजदूरों दुनिया को एक करो' के नारे के साथ वर्ष 1955 में भारतीय मजदूर संघ का कार्य प्रारम्भ किया। जिसमें 'देश का औद्योगिकीकरण, उद्योगों का श्रमिकीकरण एवं श्रमिकों का राष्ट्रीयकरण', यह मूल मंत्र रहा। वर्तमान में भारतीय मजदूर संघ, देश का सबसे बड़ा श्रमिक संगठन है।
वर्ष 1951-1953 में भारतीय जनसंघ मध्य प्रदेश एवं वर्ष 1956-1957 दक्षिणांचल के संगठन मंत्री पद पर रहे।
1964-1976 तक राज्यसभा सदस्य रहे। इस बीच में 1968 से 1970 में राज्यसभा उपाध्यक्ष मण्डल के सदस्य, आपातकाल में लोक संघर्ष समिति के सचिव की भूमिका में रहें।
4 मार्च 1979 किसान प्रतिनिधियों के समक्ष देश प्रथम की भावना के साथ राजस्थान के कोटा में देशभर से आये किसान प्रतिनिधियों के समक्ष ''देश का हम भंडार भरेंगे'', इस धनात्मक भाव को रखते हुए गैर-राजनैतिक संगठन 'भारतीय किसान संघ' की स्थापना की। उनके प्रयत्नों की पराकाष्ठा का परिणाम रहा कि उनके जीवनकाल में ही भारतीय किसान संघ देश का एक मात्र सबसे बड़ा गैर-राजनैतिक, कार्यकर्ता आधारित, अनुशासित तथा उनके द्वारा दिए गये सामूहिक निर्णय एवं व्यक्ति नहीं संगठन प्रथम जैसे आदर्शों पर चलने वाले देशव्यापी संगठन के रूप में खड़ा हुआ हैं और आज उत्तरोत्तर बढ़ता ही जा रहा है।
बाद में वर्ष 1983 में सामाजिक समरसता मंच, वर्ष 1991 में सर्वपंथ समादर मंच एवं 22 नवंबर 1991 को देश प्रथम की भावना के साथ नागपुर में स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना की तथा 1992 में अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद की स्थापना की।
स्वदेशी विचारों के आधार पर देश की अर्थव्यवस्था को किस प्रकार गति प्रदान की जाये, इस पर नियमित चर्चा, विचार गोष्ठी का क्रम चलता रहा। विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत कृषि विषय को लाने की प्रक्रिया का सतत् विरोध श्रीमान ठेंगडी जी ने किया।
वर्ष 2003 में अमेरिका के शहर सिएटल नामक स्थान में हुए विश्व व्यापार संगठन की बैठक के पूर्व श्री ठेंगडी जी एवं भारत के प्रखर विरोध के कारण पूंजीवादी विकसित देशों द्वारा अविकसित एवं विकासशील देश जो कृषि पर निर्भर है के प्रति शोषण की मानसिकता दुनिया के सामने उजागर हो गई, जिसके कारण संसार में विशेषकर तीसरी दुनिया के देशों में भारत की जय जयकार हुई।
उपरोक्त संगठनों के अलावा अन्य प्रकार के लगभग 50 संगठनों में संरक्षक व मार्गदर्शक रहे। श्रीमान ठेंगड़ी जी भारतीय विचार केन्द्रम् एवं अनेक संगठनों के उद्घाटनकर्ता रहें।
पुस्तक लेखन:- हिन्दी भाषा में 35, अंग्रेजी भाषा में 10, मराठी भाषा में 3 पुस्तक, 12 पुस्तकों की प्रस्तावना एवं अन्य कई विषयों पर अपने मूल विचारों को प्रस्तुत किया।
2. कुशल संगठक: श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ जैसे अनेक संगठनों की स्थापना के साथ ही अनेक संगठनों के मूल तत्व एवं विचारों का प्रस्तुतिकरण किया। ये सभी संगठन अपने संगठन के विस्तार राष्ट्र प्रथम की भावना के साथ देश के विकास में अमूल्य योगदान दे रहे हैं। संगठन में सैद्धान्तिक गिरावट न हो इसके वे अत्यंत आग्रही थे और इस निमित्त किसी भी सीमा तक जाने के लिए तैयार रहने के लिए कहते थे।
श्रद्धेय ठेंगड़ी जी के सरल, सहज व्यवहार एवं कार्यकर्ताओं की चिंता करने वाले स्वभाव के कारण कार्यकर्ता अपने को संगठन के लिए समर्पित कर देते थे। सिद्धान्त आदि तो धीरे-धीरे अपने आप आत्मसात् होते जाते हैं।
3. राष्ट्र को वैचारिक योगदान: विकास की अवधारणा- पश्चिमीकरण के बगैर ही आधुनिकीकरण। राष्ट्र की अवधारणा- राष्ट्र और राज्य की संकल्पना सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परिकल्पना, राष्ट्र ही सर्वोपरि। अर्थ- समाज के सामने हिंदू अर्थशास्त्र की परिकल्पना और तीसरे विकल्प की अवधारणा का प्रस्तुतिकरण।
साम्यवाद एवं पूंजीवाद के आधार पर नहीं भारतीय जीवन पद्धति के आधार पर ही समाज का विकास किया जा सकता है जिसके कारण ही आत्मनिर्भर समाज आधारित देश खड़ा हो सकता है।
विचारों के आधार पर एक-एक कार्यकर्ता संगठन रूप में खड़ा होता दिखाई पड़े अर्थात् व्यक्ति निर्माण की व्यापक सोच।
पूजनीय डॉ. हेडेगेवार जी के विचार सूत्र रूप में या बीज रूप में रहे जिसका परम पूजनीय श्री गुरु जी ने आधुनिक समय एवं संदर्भ में विवेचन किया। विविध क्षेत्रों में जब कार्य प्रारम्भ हुआ तब इन विचारों की उत्कृष्ट व्याख्या करते हुए कार्यक्षेत्र के अनुरूप स्वदेशी विचार दर्शन आधारित कार्यशैली एवं जीवन पद्धति के विकास में श्री ठेंगड़ी जी के मार्गदर्शन के कारण एवं इन्ही संगठनों के कार्यों के परिणामस्वरूप सामाजिक परिवर्तन हेतु एक तीसरे विकल्प का उदय एवं स्थापित होता संज्ञान में आ रहा है।
श्रद्धेय ठेंगड़ी जी के जीवन को संस्कृत के निम्नलिखित सुभाषित के द्वारा सटीक प्रकट किया जा सकता है, वे इस सुभाषित के अर्थ के साक्षात् प्रतिमूर्ति थे, न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग नपुनर्भवम्। कामये दु:खतप्तानां प्राणिनाम् आर्तिनाशनम्॥ हे प्रभु! मुझे राज्य की कामना नहीं, स्वर्ग-सुख की चाह नहीं तथा मुक्ति की भी इच्छा नहीं। एकमात्र इच्छा यही है कि दुख से संतप्त प्राणियों का कष्ट समाप्त हो जाये।
जीवनी लेखक
संयोजक: जन्मशताब्दी वर्ष समिति भारतीय किसान संघ
आई.एन. बसवेगौड़ा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ, मोबाईल 9740999333।
बद्री नारायण चौधरी, राष्ट्रीय महामंत्री, भारतीय किसान संघ, मोबाईल 9414048490
प्रभाकर केलकर, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भारतीय किसान संघ, मोबाईल 9425014262
श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगडीजी का जीवन दर्शन एवं राष्ट्र के लिए वैचारिक योगदान