फसल विविधीकरण और जल्दी पकने वाली धान की किस्म से हो सकता है खेतों में डंठल जलाने का समाधान: डॉ. अशोक दलवई

Dr Ashok Dalwai Chief Executive Officer National Rainfed Autority and Chairperson of high-level committee of Doubling Farmers Income
पंजाब के किसान धान की खेती से हटें और तिलहन व मक्का जैसे कम पानी आवश्यकता वाली फसलों को उगाएं
नयी दिल्ली। फसल विविधता और जल्द तैयार होने वाली धान की किस्मों की खेती जैसे कदम खेतों में डंठल जलाने से उत्पन्न समस्या का समाधान करने में सहायक हो सकते हैं। राष्ट्रीय वर्षा आधारित क्षेत्र प्राधिकार (एनआरएए) के मुख्य कार्याधिकारी और किसानों की आय दोगुनी करने वाली समिति के अध्यक्ष डॉ. अशोक दलवई ने मंगलवार, 5 नवम्बर 2019 को ये सुझाव प्रस्तुत किए।
उन्होंने कहा कि पंजाब जैसे राज्यों की सरकारों को किसानों को कुछ धान की जगह दूसरी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। किसानों फसल विविधता के लिए शिक्षित भी किया जाना चाहिए। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में 27 अक्टूबर को दीपावली त्यौहार के बाद से वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर हो गयी है।
डॉ. दलवाई ने कहा, ''एक उपाय यह है कि जल्द पकने वाले धान की किस्मों की खेती की जाए। अगर हम सितंबर तक धान की कटाई कर सकें तो किसानों को कटाई के बाद गेहूँ की बुवाई के लिए खेत तैयार करने का पर्याप्त लंबा समय मिल जाएगा।'' मौजूदा समय में, धान की कटाई के लिए लगभग 20-25 दिनों का समय मिलता है। इससे पर गेहूँ के लिए खेत तैयार करने के लिए समय का बड़ा दबाव रहता है। सबसे बड़ी बात ये है कि उन्हें खेतों में काम करने वाले मजदूरों की कमी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में वे जल्दबाजी के लिए डंठल खेत में ही जला देते है।
डॉ. दलवई ने कहा कि धान उगाने के लिए काफी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है चूंकि पंजाब में भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है इसलिए बेहतर है कि हम धान की खेती से हटें और तिलहन व मक्का जैसे कम पानी की आवश्यकता वाली फसलों को उगाएं। इससे समस्या का समाधान होगा।
उन्होंने कहा कि धान से हटकर कम समय में पकने वाली फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसानों पर सर्दियों में गेहूँ के लिए खेत तैयार करने का दबाव होता है।
उन्होंने कहा, 'हम गेहूँ उगाने वाले राज्यों में धान खेती से आसानी से हट सकते हैं क्योंकि धान को देश में कई अन्य क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। जबकि गेहूँ को हर जगह नहीं उगाया जा सकता है क्योंकि इसे सर्दी की आवश्यकता होती है। इसलिए, गेहूँ के मामले में समझौता नहीं किया जा सकता है। उसकी यहीं खेती करनी होगी। इसलिए, हम उत्तर भारत में धान के लिए एक विकल्प की खोज कर सकते हैं।'
डॉ. दलवई ने कहा, ''हमें इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। साथ ही उनका रुख ऐसी फसलों की ओर मोडऩे के लिए, उन फसलों के उपज के स्तर को देखना होगा। ऐसा करना कुछ असंभव नहीं है। हम इन किस्मों का परीक्षण कर इस काम को अंजाम दे सकते हैं।''
अखिल भारतीय किसान यूनियन के समन्वयक युद्धवीर सिंह ने कहा कि किसानों को अन्य फसलों का रुख करने में समय लगेगा, लेकिन सरकार को कुछ प्रोत्साहन प्रदान करके फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने कहा, ''देश में चारे की कमी है। सरकार इन अवशेषों को नि:शुल्क में ले सकती है और इसे उत्तर प्रदेश में तीन लाख छुट्टे पशुओं के लिए उपयोग में ला सकती है। इससे समस्या का समाधान हो जाएगा।''