चंडीगढ़। फसल के अवशेष को तेजी से खेतों में गला देने की तकनीक का पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पी.ए.यू.), लुधियाना वैज्ञानिक अध्ययन करे। पंजाब के अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास विसवाजीत खन्ना ने बुधवार, 20 नवम्बर 2019 को मोहाली जिले में न्यू चण्डीगढ़ के पास के गाँव माजरा में खेत निरीक्षण के दौरान यह बात कही। इस मौके पर अतिरिक्त मुख्य सचिव के साथ कृषि आयुक्त बलविन्दर सिंह सिद्धू, कृषि संचालक डॉ. सुतंतर कुमार ऐरी के अलावा कई किसान भी उपस्थित थे।
श्री खन्ना ने गाँव माजरा के खेतों में पराली को खेतों में गलाने की विधि के खेत निरीक्षण करते हुए कहा कि फसल के अवशेष का कारगर ढंग से निपटारा करने के लिए वैज्ञानिक तर्ज पर अति आधुनिक प्रौद्यौगिकी विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
श्री खन्ना ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना को धान की पराली को तेजी से खेतों में गला देने की प्रौद्यौगिकी का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने के लिए कहा जिससे पराली जलाने के रुझान को प्रभावशाली ढंग से रोका जा सके। उन्होंने कहा कि पराली जलाने को रोकने के लिए परखी हुई और टिकाऊ विधि को विकसित करने में निजी संस्थाओं को भी शामिल किया जाये।
उन्होंने राज्य के कृषि आयुक्त को पी.ए.यू. के साथ समन्वय करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि राज्य के किसानों की आवश्यकता के अनुसार ऐसी नयी पहुँच वाली प्रौद्यौगिकी विकसित की जाये जिससे इस समस्या का ठोस हल निकाला जा सके।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह स्वयं इस विषय में बेहद गंभीर हैं और पराली जलाने की चुनौती से निपटने के लिए ठोस प्रौद्यौगिकी विकसित करने की बात कह चुके हैं। श्री खन्ना ने कहा कि पंजाब किसान आयोग के अध्यक्ष भी इस सम्बन्ध में गंभीरता के साथ तालमेल और निरीक्षण कर रहे हैं।
पराली को खेतों में कम समय में ही गला देने की प्रौद्यौगिकी के संदर्भ में श्री खन्ना ने पी.ए.यू. के खेती विशेषज्ञों को इस सम्बन्ध में कोई भी निर्णय लेने से पहले इस विधि के लाभ-हानि दोनों पहलूओं को बारीकी के साथ जाँचने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि पी.ए.यू इस विधि का परीक्षण अपने प्रक्षेत्रों में करें जिससे इस जैविक प्रौद्यौगिकी की सफलता का मूल्यांकन किया जा सके। उन्होंने विश्वविद्यालय को अपनी अनुशंसाओं से सम्बन्धित रिपोर्ट जल्द से जल्द सौंपने को कहा।
वातावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिए नवीन प्रौद्यौगिकी विकसित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए अतिरिक्त मुख्य सचिव ने कहा कि खेतों में ही पराली खपाने के लिए उभर रही तकनीकें पराली जलाने की समस्या के हल के लिए सहायक सिद्ध हो सकतीं हैं जिससे हमारे राज्य को हरा भरा और प्रदूषण मुक्त बनाकर नागरिकों के लिए स्वस्थ वातावरण बनाया जा सके।
खेत प्रदर्शन के दौरान उन्हें बतलाया गया कि अपनी तरह की यह पहली जैविक विधि है जिससे पराली को काटने और बाहर ले जाए बिना 15 दिनों में धान की पराली को गला देती है। यह भी बताया गया कि खेत में गल चुकी पराली को आसानी से ही मिट्टी में मिलाया जा सकता है जिससे अगली फसल के लिए खाद की 35 प्रतिशत कम आवश्यकता पड़ेगी। मिट्टी में पराली को मिलाने से या पूरी तरह खपा देने से अगली फसल के दौरान घास-पात/ खरपतवारों की कमी आयेगी और किसानों की आमदनी बढऩे के साथ-साथ और लाभ भी मिलेंगे।
फसल के अवशेष को तेजी से खेतों में गला देने की तकनीक का अध्ययन करे पीएयू: विसवाजीत खन्ना