मुंबई, गुरुवार, 21 नवम्बर 2019। फायदे की खुशबू बिखेरने वाला बासमती धान इस बार किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है। निर्यात माँग कमजोर रहने की बढ़ती आशंकाओं के कारण पिछले एक महीने में बासमती की कीमतों में 21 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आ चुकी है। बासमती की सभी किस्मों की कीमतों में गिरावट आने से किसानों को नुकसान हो रहा है। बासमती में घाटे की बढ़ती बेचैनी किसानों को वायदा बाजार की तरफ मोडऩे का काम कर रही है। वायदा एक्सचेंज इस मौके को भुनाने के लिए किसानों को हेजिंग का मंत्र दे रहे हैं।
महज एक महीने पहले हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश की मंडियों में बासमती धान की लगभग सभी किस्में 3,000 रुपये प्रति क्विंटल के ऊपर बिक रही थीं, जबकि इस समय सभी किस्मों के दाम 3,000 रुपये से नीचे चल रहे हैं।
एगमार्क से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार हरियाणा में पिछले महीने 14 अक्टूबर को बासमती-1121 का भाव 3,451 रुपये प्रति क्विंटल था जो अब गिरकर 2,781 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। इसी तरह बासमती-1509 किस्म की कीमत 2,251 रुपये, बासमती-1121 किस्म की कीमत 2,201 रुपये और बासमती-1509 धान की कीमत गिरकर 2,251 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। हाजिर बाजार में कीमतें गिरने की वजह से वायदा बाजार में गिरावट आई है। आईसीईएक्स में पीबी-1121 का भाव गिरकर 3,161 रुपये प्रति क्विंटल हो गया जो पिछले महीना 3,500 रुपये के आस-पास चल रहा था।
चावल कारोबारियों के अनुसार बाजार में माँग कमजोर है क्योंकि निर्यात कम है जिस कारण कीमतें लगातार गिर रही हैं लेकिन इस साल बासमती का उत्पादन भी कम रहने वाला है इसीलिए फरवरी से कीमतों में सुधार आना शुरू हो जाएगा। यह फसल का सत्र है इसलिए मंडियों में आवक अधिक है, लेकिन माँग नहीं है जिससे कीमतें लगातार गिर रही हैं। पिछले साल इस समय बासमती धान की औसत कीमत 3,000 रुपये थी जो इस साल 2,300 रुपये प्रति क्विंटल है। इस तरह पिछले साल की अपेक्षा भाव करीब 700 रुपये प्रति क्विंटल घट गया है। दूसरी तरफ फसल तैयार होने के बाद बेमौसम बारिश के कारण भी फसल को नुकसान हुआ है। इस तरह किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। उत्पादन भी कम है और कीमत भी कम मिल रही है। बासमती चावल संगठनों से जुड़े किसानों का कहना है कि पिछले साल प्रति एकड़ 35 क्विंटल उपज हुई थी, जबकि इस बार उपज प्रति एकड़ करीब 28 क्विंटल है।
हाजिर बाजार की अपेक्षा वायदा बाजार में भाव बेहतर होने के कारण किसान और कारोबारी वायदा बाजार की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। कमोडिटी एक्सचेंज आईसीईएक्स के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी संजित प्रसाद कहते हैं कि किसानों का जोखिम कम करने के लिए ही वायदा बाजार होता है। हेजिंग करके किसान और कारोबारी अपना संभावित घाटा टाल सकते हैं। वायदा अनुबंधों के माध्यम से हेजिंग करना बीमे के समान है। बासमती के किसानों और निर्यातकों को इसकी उपयोगिता पता है।
संजित प्रसाद कहते हैं कि धान की रोपाई जून-जुलाई के महीने में होती है और कटाई सितंबर से अक्टूबर के महीनों में की जाती है। नवंबर के दौरान बाजार में सर्वाधिक आवक होती है। इसके बाद फरवरी तक बाजार में आवक कम होने लगती है। आवक कम होते ही कीमतों में सुधार आना शुरू हो जाता है। कुल मिलाकर माँग और आपूर्ति के हिसाब से कीमतों में घट-बढ़ होती है। कीमतों के घट-बढ़ के जोखिम से बचने के लिए आईसीईएक्स मंच पर किसान, मिलर, निर्यातक और आम कारोबारी हेजिंग करते हैं। किसानों को इसकी जानकारी देने के लिए एक्सचेंज की तरफ से लगातार जागरूकता और कारोबारी कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
निर्यात माँग कमजोर रहने के चलते बासमती के दामों में गिरावट