करामाती तकनीक से किसान को त्रिकोणीय लाभ होगा: डॉ. बिसेन
जबलपुर। कृषकों की आय बढ़ाने में कारगर है अरहर-लाख उत्पादन तकनीक। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शुक्रवार, 15 नवम्बर 2019 को अपरान्ह जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में आधुनिक प्रक्षेत्रों का भ्रमण करते हुए यह बात कही।
दिग्विजय सिंह ने कहा कि कृषि वैज्ञानिक इसी तरह कृषकों की आवश्यकता के अनुरूप तकनीक विकसित करते रहे जिससे किसान समृद्ध होकर निरन्तर खुशहाल हो सके। उन्होंने आधुनिक कृषि तकनीकी से तैयार 'जवाहर मॉडल अरहर-लाख उत्पादन तकनीक प्रक्षेत्र' का भ्रमण किया। पूर्व मुख्यमंत्री श्री सिंह ने आदिवासी कृषक महिलाओं को लाख के कीट एवं बीज भी वितरित किये।
कुलपति डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन ने श्री दिग्विजय सिंह का अभिनंदन किया। डॉ. बिसेन ने बताया कि अरहर-लाख की करामाती तकनीक से किसान को त्रिकोणीय लाभ होगा। इस आधुनिक तकनीक में बोरों में मिट्टी भरकर खेती की जाती है। यह देश का पहला इकलौता मॉडल है। डॉ. बिसेन ने कहा कि यह मॉडल किसानों के लिये ए.टी.एम. साबित होगा क्योंकि साल के 9 महीने प्रतिमाह किसान को नगद लाभ मिलता रहेगा। इस तकनीक से कम या अधिक जल के बावजूद पथरीली, रेतीली और बंजर-ऊसर भूमि में भी सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है। यह तकनीक देश में खेती का क्षेत्रफल बढ़ाने और किसानों की आय को दोगुना करने में सार्थक सिद्ध होगी।
इस मौके पर नगर अध्यक्ष कांग्रेस दिनेश यादव, विष्णुशंकर पटेल, संचालक अनुसंधान सेवाएं डॉ. पी.के. मिश्रा, संचालक शिक्षण डॉ. एस.डी. उपाध्याय, संचालक प्रक्षेत्र डॉ. दीप पहलवान, अधिष्ठाता डॉ. आर.के. नेमा, डॉ. आर.एम. साहू, अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ. अमित शर्मा, कृषि वैज्ञानिक और अनुसंधानरत् छात्रगण, आई.जी. श्री चौहान, एसपी अमित सिंह, उप कलेक्टर एवं एस.डी.एम. आदि उपस्थित रहे।
इस तकनीक के जनक एवं कृषि विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. मोनी थामस ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कृषकों की लागत को कम करने एवं आय को बढ़ाने के मुख्य उद्देश्य को लेकर एक सफल अनुसंधान किया गया जिसके आशानुरूप परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। सामान्य तकनीक से एक पौधे से जहाँ अरहर की 500 ग्राम उपज प्राप्त होती है। इस तकनीक के द्वारा 2 किलोग्राम यानि 4 गुना अधिक उपज इसके अलावा 600 ग्राम लाख एवं 5 किलोग्राम तक जलाऊ लकड़ी प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि इसतकनीक के उपयोग हेतु कृषकों को संसाधन का समुचित प्रबंधन करना होगा, ताकि लघु, सीमान्त एवं महिला कृषक बड़ी आसानी से खेती से लाभ ले सकें। इस तकनीक से दुगना ही नहीं तिगुना लाभ प्राप्त होगा। दलहनी फसल हेतु यह प्रयोग भविष्य में लघु, सीमान्त व महिला कृषकों हेतु अतिलाभकारी सिद्ध होगा। कृषकों को फसल उत्पादन के साथ ही लाख एवं जलाऊ लकड़ी प्राप्त होगी।
इस तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उपजाऊ जमीन व अधिक संसाधन की जरूरत नहीं होती है। मात्र 60 किलोग्राम मिट्टी से भरी बोरियों में ही पोषक तत्वों एवं जवाहर जैव उर्वरक, गोबर खाद, केंचुआ खाद से विशेष प्रकार से उपचारित कर उसमें विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई अरहर किस्म टी.जे.टी.-501 को लगाया गया है। आधा एकड़ में 200 पौधे लगाये जाते हैं। इसके लिये पौधे से पौधे व पंक्ति से पंक्ति दूरी 6 फीट रखी रखी जाती है। इन पौधों पर लाख के कीड़े छोड़े जाते हैं। ये कीड़े पौधों को नुकसान नहीं पहुँचते हैं। परिणामत: प्रति पौधा 600 ग्राम लाख कृषकों को अतिरिक्त प्राप्त होती है। इस तरह 11 माह लगातार एक पौधे से 500 ग्राम के बदले 2 किलोग्राम अर्थात् चार गुनी अरहर की उपज प्राप्त होती है। एक पौधे से 600 ग्राम लाख साथ ही 5 किलोग्राम जलाऊ लकड़ी भी प्राप्त होती है। इस प्रकार करामाती तकनीक से किसान को सहज ही त्रिकोणीय लाभ हो जाता है। आधा एकड़ में विकसित जवाहर मॉडल में अरहर की 20 किस्में, हल्दी की 7 तथा अरदक, टमाटर, धानिया, प्याज, लहसुन आदि की एक-एक किस्म का प्रदर्शन किया गया है
यह हैं फायदें
इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य लघु, सीमान्त व महिला कृषकों को लाभ पहुँचाना है। जमीन के स्थान पर प्लास्टिक की खाली बोरियों में मिट्टी भरकर ही खेती की जा सकती है। पोषक तत्वों एवं खाद का सम्पूर्ण लाभ पौधों को प्राप्त होता है। आश्चर्यजनक रूप से 90 प्रतिशत बीजों की बचत होती है। इस तकनीक के उपयोग से अरहर उत्पादन में त्रिकोणीय लाभ प्राप्त होता है खरपतवार एवं अन्य समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
कृषकों की आय बढ़ाने में कारगर है अरहर-लाख उत्पादन तकनीक: दिविजय सिंह