जल संरक्षण की शुरुआत कृषि क्षेत्र से करनी चाहिए: डॉ. बड़ोदिया


बड़वानी। जल संरक्षण की शुरुआत कृषि क्षेत्र से करनी चाहिए क्योंकि सर्वाधिक मात्रा में कृषि कार्यों में ही जल का उपयोग किया जाता है। कृषि विज्ञान केन्द्र बड़वानी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एस.के. बड़ोदिया ने यह बात बुधवार, 6 नवम्बर 2019 को आयोजित एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में कही।
कृषि आदान विक्रेताओं हेतु जल संरक्षण एवं कीट नियंत्रण तकनीकी पर आयोजित प्रायोगिक प्रशिक्षण कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि जल संरक्षण की शुरुआत कृषि क्षेत्र से करनी चाहिए क्योंकि सर्वाधिक मात्रा में कृषि कार्यों में ही जल का उपयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि सिंचाई में जल का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। जनमानस में धारणा है अधिक पानी, अधिक उपज, जो कि गलत है क्योंकि फसलों के उत्पादन में सिंचाई का योगदान 15-16 प्रतिशत ही होता है। अगर सभी किसान बूँद-बूँद सिंचाई बौछार या फव्वारा तकनीकी तथा खेतों के समतलीकरण करा लें तो कम जल में भी अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
उन्होंने विक्रेताओं से आह्वान किया गया कि वे अपने स्तर से भी किसानों को बतौर समझाईश यह जानकारी दें ताकि वे इस तकनीक को अपने खेतों में अपनाये।
इस अवसर पर आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र खरगौन के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. व्हाय.के. जैन ने उद्यानिकी फसलों में रोग एवं कीटों की पहचान और कीटनाशकों के प्रयोग में आवश्यक सावधानियों के बारे में विस्तार से बताया। डॉ. डी.के. जैन ने प्रशिक्षणार्थियों को पपीता की फसल में ड्रिप सिंचाई पद्धति के लिये सिंचाई एवं फर्टिगेशन शेड्यूल की जानकारी दी। डॉ. डी.के. तिवारी ने चना एवं मक्का फसल में ड्रिप सिंचाई पद्धति की जानकारी दी। केन्द्र के तकनीकी अधिकारी यू.एस. अवास्या ने कम्प्यूटर आधारित स्वचलीत ड्रिप सिंचाई तकनीकी (आटोमेशन) के संबध में तकनीकी बिन्दुओं पर प्रकाश डाला।