उर्वरक का 75 से 80 प्रतिशत उपयोग फसलें नहीं करती हैं: डॉ. कटियाल
वाराणसी। देश की लगभग 36 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि बीमार है। वह किसी न किसी प्रकार की समस्या से ग्रसित है। इसके सुधार के लिये आवश्यक कदम नहीं उठाये गए तो भारतीय कृषि एवं खाद्य सुरक्षा प्रभावित होगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक और बिहार सरकार के पूर्व कृषि सलाहकार डॉ. मंगला राय ने यहाँ शुक्रवार, 15 नवम्बर 2019 को इस आशय के विचार व्यक्त किए।
भारतीय मृदा विज्ञान समिति नई दिल्ली तथा मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग कृषि विज्ञान संस्थान बीएचयू की ओर से संस्थान के शताब्दी प्रेक्षागृह में आयोजित मृदा विज्ञान में विकास के 84वें वार्षिक सम्मेलन के उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. मंगला राय ने कहा कि देश की लगभग 36 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि बीमार है। वह किसी न किसी प्रकार की समस्या से ग्रसित है। इसके सुधार के लिये आवश्यक कदम नहीं उठाये गए तो भारतीय कृषि एवं खाद्य सुरक्षा प्रभावित होगी। बढ़ती जनसंख्या को भोजन सुरक्षा सुनिश्चित कराना भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि मृदा वैज्ञानिकों को मिट्टी में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवों के तरफ ध्यान देना होगा। ये जीव प्रतिवर्ष वातारण से करीब 41 हजार 300 किलोग्राम नाइट्रोजन जमा करते हैं। रसायनों के प्रयोग से इनकी यह क्षमता प्रभावित होती है। जीवाणुओं का समुचित उपयोग किया गया तो उर्वरकों की वर्तमान आवश्यकता बहुत कम की जा सकती है।
विशिष्ट अतिथि हरियाणा कृषि विश्वविद्याय हिसार के पूर्व कुलपति डॉ. जे.सी. कटियाल ने कहा कि उर्वरकों की उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए शोध करना होगा। आज हमारी उर्वरक उपयोग क्षमता लगभग 21 प्रतिशत है। खेत में डाले गये उर्वरक का 75 से 80 प्रतिशत उपयोग फसलें नहीं करती है जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। यदि हम उर्वरकों के सही एवं सामयिक प्रयोग की वैज्ञानिक संस्तुतियाँ किसानों तक पहुँचा सके तो उर्वरकों का प्रयोग 50 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य समय से पूरा किया जा सकेगा।
पूर्वांचल की दोमट मिट्टी में कम हैं नाइट्रोजन व फॉस्फोरस
पूर्वांचल में पायी जाने वाली जलोढ़ (दोमट मिट्टी) में नाइट्रोजन व फॉस्फोरस की मात्रा कम है। क्षेत्रफल की दृष्टिकोण से भारत मे यहीं मिट्टी सबसे अधिक पायी जाती है। आलम यह है कि खेती योग्य भूमि के कुल क्षेत्रफल का करीब 22 प्रतिशत भाग दोमट ही है। इसका निर्माण नदियों के निक्षेपण से होता है। इसलिए इसमें नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम पायी जाती है। किसान बिना मिट्टी की जाँच कराए ही यूरिया डालकर फसल प्राप्त करते हैं। धीरे-धीरे मिट्टी की सेहत बिगड़ जाती है।
कृषि विज्ञान संस्थान के मृदा विज्ञानी डॉ. पी.के. सिंह ने बताया कि किसान मिट्टी की जाँच कराएं और उस हिसाब से खाद का प्रयोग करें। बिना जाँच के मिट्टी में मिलायी गयी खाद इसकी सेहत को बिगाड़ रही है। बताया कि जलोढ़ मिट्टी में पोटाश एवं चूना की पर्याप्त मात्रा होती है। भारत में उत्तर का मैदान (गंगा का मैदान), सिंध का मैदान, ब्रह्मपुत्र का मैदान गोदावरी, कावेरी का मैदान का निर्माण नदियों की जलोढ़ मिट्टी से हुआ है। यह गेहूँ के लिए उत्तम माना जाता है। इसके अलावा इसमें धान एवं आलू की खेती भी खेती की जाती है।
यूरिया के अधिक प्रयोग से बिगड़ी मिट्टी की सेहत
वैज्ञानिकों ने कहा कि रसायनिक उर्वरक के प्रयोग से आज करीब 60 प्रतिशत मिट्टी की सेहत बिगड़ चुकी है। उसमें खनिज तत्वों का अनुपात ठीक नहीं है। यह सब यूरिया के गलत प्रयोग से हुआ। यूरिया के चलते नाइट्रोजन आक्साइड पर्यावरण में जा रहा है। इससे कार्बन उत्सर्जन भी दो सौ गुना अधिक बढ़ गया है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
फसलों के अवशेष जलाएं नहीं
कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि किसान फसलों के अवशेषों को जलाए नहीं। इससे मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, जिसका प्रभाव मिट्टी की सेहत पर भी पड़ता है। वैज्ञानिक इन अपशिष्ट पर प्रयोग कर रहे हैं। इससे खाद के अलावा बिजली उत्पादन भी किया जा रहा है। किसान आधुनिक शोध को अपनाकर कूड़े से भी लाभ कमा सकते हैं। इससे किसानों की आय बढ़ेगी तथा पर्यावरण भी सुरक्षित होगा।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. रमेश चन्द ने बताया कि संस्थान द्वारा विकसित कई प्रजातियाँ तथा संरक्षण-कृषि तकनीकियों ने इस क्षेत्र के किसानों की आय बढ़ाने में मदद की है।
मृदा एवं कृषि रसायन विभाग के अध्यक्ष प्रो. पी राहा ने विभाग की उपलब्धियाँ बताईं। तीन दिनों तक चलने वाले इस सम्मेलन में करीब 400 शोध पत्र पढ़े जायेंगे। संचालन डॉ. एस.के. सिंह ने तथा धन्यवाद समिति के सचिव डॉ. डी.आर. विश्वास ने दिया।
देश की 36 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि बीमार, संभले नहीं तो खतरे में भविष्य: डॉ. मंगला राय