कानपुर, बुधवार, 20 नवम्बर 2019। चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के गेहूँ से तैयार लच्छा पराठा दक्षिण भारतीयों को भा रहा है। गेहूँ की तीन प्रजातियाँ के-402, के-607 और के-306 लच्छेदार पराठा बनाने में उपयोग हो रही हैं।
कानपुर और आसपास जिलों कन्नौज, फर्रुखाबाद और बुंदेलखंड में इनका अच्छा उत्पादन हो रहा है। तमिलनाडु, आंध प्रदेश और कर्नाटक में इन प्रजातियों की जबरदस्त माँग है। इन प्रदेशों में गेहूँ बीजों का उत्पादन कर रही कई कंपनियों ने भारी माँग भेजी है। इसे देखते हुए विश्वविद्याल इन प्रजातियों की अतिरिक्त बुआई कराएगा। अधिकारियों के अनुसार कंपनी चाहेगी तो वह किसानों से सीधे भी सम्पर्क कर उत्पादन करा सकती हैं।
कानपुर, विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एच.जी. प्रकाश का कहना है कि इन प्रजातियों की खासियत यह है कि इसमें कैलोरी कम और प्रोटीन की मात्र अधिक होती है। डॉ. प्रकाश के अनुसार यह प्रजाति वर्ष 2011 में पूरे देश की जलवायु के लिए उपयोगी घोषित की जा चुकी है। दक्षिण भारत में भी इसका उत्पादन संभव है।
सामान्य गेहूँ से 18 प्रतिशत अधिक प्रोटीन
इन प्रजातियों में सामान्य गेहूँ की अपेक्षा 18 प्रतिशत अधिक प्रोटीन होता है। ग्लूटेन भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है जो लस पैदा करने के लिए उपयोगी है। कार्बोहाइड्रेड, मैंग्नीशियम, फॉस्फोरस, फाइटिक एसिड, कॉपर, जिंक, फोलेट-विटामिन बी, फोलेट को फोलिक एसिड या विटामिन बी-9 भी पर्याप्त पाया जाता है।
डायबिटीज में भी काफी फायदेमंद हैं यह प्रजातियाँ
इन प्रजातियों की सबसे खास बात यह है कि इनमें कैलोरी कम पायी जाती है। आमतौर पर 300 से अधिक कैलोरी सामान्य गेहूँ की प्रजातियों के 100 ग्राम आटे में मिल जाती हैं। मगर इसमें 280 कैलोरी मिलती है। प्रतिदिन दो पराठे से दैनिक जरूरतों का 30 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पूरी हो सकती है।
दक्षिण भारतीयों को भा रहा सीएसए के गेहूँ का लच्छा पराठा