वायु प्रदूषण से औसतन 3 से 7 साल कम हुई उत्तर भारत में रहने वाले लोगों की उम्र

Pollution in Ganga River
2016 तक गंगा के मैदानी क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर 72 प्रतिशत बढ़ा
प्रदूषण में 25 प्रतिशत की कमी करने पर 1 से 2 वर्ष उम्र बढ़ सकती है
नयी दिल्ली। उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का संकट लगातार गहराने का असर लोगों की औसत आयु पर पड़ रहा है। एक अध्ययन के अनुसार गंगा के मैदानी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की औसत आयु सीमा में सात साल कम होने की आशंका है। अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय की शोध संस्था एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एपिक द्वारा तैयार वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019 को जारी विश्लेषण के अनुसार उत्तर भारत में गंगा के मैदानी क्षेत्रों में रह रहे लोगों की औसत आयु सीमा लगभग सात वर्ष तक कम होने की आशंका है। इसके पीछे इन क्षेत्रों के वायुमंडल में दूषित सूक्ष्म तत्वों और धूलकणों से होने वाले वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी को मुख्य कारण बताया गया है। 
विश्लेषण रिपोर्ट में उत्तर भारतीय क्षेत्रों में वायु प्रदूषण फैलाने वाले पार्टिकुलेट तत्वों का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों से काफी दूर पाया गया है। इसमें 1998 से 2016 के दौरान गंगा के मैदानी इलाके में वायु प्रदूषण 72 प्रतिशत बढऩे की बात सामने आयी है। उल्लेखनीय है कि गंगा के मैदानी क्षेत्रों में भारत की लगभग 40 प्रतिशत आबादी रहती है।
शिकागो विश्वविद्यालय में एपिक के निदेशक डॉ. माइकल ग्रीनस्टोन ने वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक की विश्लेषण रिपोर्ट का हिंदी संस्करण जारी करते हुये कहा कि यह रिपोर्ट पार्टिकुलेट तत्वों से जनित वायु प्रदूषण से इंसानी जीवन पर पडऩे वाले प्रभावों को उजागर करती है। उन्होंने कहा कि इसकी मदद से ऐसी नीतियाँ बनाने में मदद मिल सकती है जो वायु प्रदूषण के कारण जीवन प्रत्याशा को प्रभावित करने वाले कारकों से निपटने में सक्षम हों।
रिपोर्ट के अनुसार 2016 तक गंगा के मैदानी क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर 72 प्रतिशत बढ़ा है और इसकी वजह से औसत आयु में 3.4 से 7.1 साल की कमी आयी है। रिपोर्ट में यह अनुमान भी व्यक्त किया गया है कि भारत में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रहते हुये वायु प्रदूषण के स्तर में करीब 25 प्रतिशत की कमी को बरकरार रखने पर औसत आयु सीमा में औसतन 1.3 वर्ष की वृद्धि होगी। जबकि इस स्थिति में गंगा के मैदानी क्षेत्रों के लोगों के औसत जीवनकाल में करीब दो वर्ष की वृद्धि संभावित है। 
उल्लेखनीय है कि उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में दिल्ली एनसीआर के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब वायु प्रदूषण की बढ़ती समस्या का सामना कर रहे हैं।