सोया खली निर्यात में 53 प्रतिशत की गिरावट के साथ 10 लाख टन रहने का अनुमान

Soyabean Cake DOC Meal


इंदौर। भारी बारिश से सोयाबीन उत्पादन में कमी के कारण मौजूदा तेल विपणन वर्ष में भारत से सोया खली निर्यात 53 प्रतिशत घटकर करीब 10 लाख टन रह सकता है। देश को सोया खली के निर्यात में भारी मूल्य प्रतिस्पर्धा का पहले ही सामना करना पड़ रहा है। प्रसंस्करणकर्ताओं के इंदौर स्थित संगठन सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के कार्यकारी निदेशक डी.एन. पाठक ने बृहस्पतिवार, 24 अक्टूबर 2019 को यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया, ''मौजूदा हालात को देखते हुए हमें लगता है कि जारी तेल विपणन वर्ष 2019-20 (अक्टूबर 2019-सितंबर 2020) में देश से सोया खली निर्यात 10 लाख टन के आसपास रह सकता है।'' श्री पाठक ने बताया कि भारी बारिश से सोयाबीन उपज में गिरावट के कारण घरेलू तेल मिलों में पेराई (तिलहन से तेल निकालने की प्रक्रिया) प्रभावित हो सकती है। इसका स्वाभाविक असर सोया खली उत्पादन पर भी पड़ेगा।
सोपा के आँकड़ों के अनुसार 30 सितंबर को समाप्त तेल विपणन वर्ष 2018-19 (अक्टूबर 2018-सितंबर 2019) में देश से 21.43 लाख टन का सोया खली निर्यात किया गया था। सोपा के सर्वेक्षण के अनुसार मध्य प्रदेश और राजस्थान के प्रमुख सोयाबीन उत्पादक क्षेत्रों में इस बार अगस्त और सितंबर के दौरान मॉनसून की भारी बारिश से सोयाबीन की फसल को खासा नुकसान पहुँचा। नतीजतन किसानों में 'पीले सोने' के रूप में मशहूर इस तिलहनी फसल की राष्ट्रीय उपज करीब 18 प्रतिशत गिरकर 89.94 लाख टन रह सकती है।
जानकारों ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय सोया खली के भाव अमेरिका, ब्राजील और अर्जेन्टीना के इस उत्पाद के मुकाबले लम्बे समय से ऊँचे बने हुए हैं। इससे भारतीय सोया खली की माँग पर विपरीत असर पड़ रहा है। अमेरिका, ब्राजील और अर्जेन्टीना की गिनती दुनिया के सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादकों के रूप में होती है। सोया खली वह उत्पाद है, जो प्रसंस्करण इकाइयों में सोयाबीन का तेल निकाल लेने के बाद बचा रह जाता है। यह उत्पाद प्रोटीन का बड़ा स्रोत है। इससे सोया आटा और सोया बड़ी जैसे खाद्य उत्पादों के साथ पशु आहार तथा मुर्गियों का दाना भी तैयार किया जाता है।