राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र (नेशनल रिसर्च सेन्टर ऑन सीड स्पाइसेस-एनआरसीएसएस), तबीजी, अजमेर - 305 206 (राजस्थान)।
जीरा का महत्व एवं उपयोग:- जीरा हमारी पाकशाला का एक अभिन्न घटक है। मसालीय गुणों के अतिरिक्त इसमें पाये जाने वाले कई कार्बनिक सक्रिय तत्वों एवं खनिजों के कारण इसके अनेक औषधीय गुण भी हैं, जिसके कारण इसका उपयोग पावन वृद्धि, अतिसार, अग्निगांध इत्यादि में सुधार हेतु किया जाता है।
उपयुक्त जलवायु:- मध्यम ठंड के साथ शुष्क वातावरण एवं कोहरायुक्त जलवायु इस फसल के लिए उपयुक्त है।
मृदा का चयन:- दोमट एवं हल्की चिकनी मिट्टी जिसमें उचित जल निकास एवं पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ उपलब्ध हों इस फसल के लिय योग्य है।
मृदा सौरीकरण:- फसल बुवाई के पूर्व जून-जुलाई माह में लगभग 10-15 दिनों तक मिट्टी को मध्यम मोटे रंग विहीन प्लास्टिक की चादर से ढक कर रखने की विधि को गृदा सौरीकरण कहा जाता है। इस उपाय से मृदा में रहने वाली फफूँदों एवं सूत्रकृमियों का प्राय: नाश हो जाता है, जिससे इनके द्वारा होने वाले मृदाजनित रोगों एवं संबधित हानियों से बचाव किया जा सकता है।
बीज की उन्नत किस्में:- आर.जेड.-19, आर.जेड.-209, आर.जेड.-223, गुजरात जीरा-1, गुजरात जीरा-2, गुजरात जीरा-3 एवं गुजरात जीरा-4।
बुवाई का समय:- मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक।
बीज दर:- 12 से 16 किलाग्राम बीज प्रति हेक्टेयर या विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार।
फराल ज्यामिति:- कतार से कतार की दूरी 25 सें.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखी जानी चाहिए।
खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग:- 30 किलोग्राम नत्रजन, 20 किलोग्राम फॉस्फेट तथा 20 किलोग्राम पोटाश। नत्रजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस तथा पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देनी चाहिए। शेष मात्रा बुआई के 30 एवं 60 दिनों के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में सिंचाई के साथ प्रयोग की जानी वाहिए।
सिंचाई:- बुवाई के तुरन्त बाद तथा इसके बाद 7 से 8 दिनों के बाद, 35 दिनों के बाद एवं 65 दिनों के बाद हल्की सिंचाई की जानी चाहिए। बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति द्वारा 25 से 30 प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है।
खरपतवार नियंत्रण:- खरपतवारनाशक ऑक्सीडाइआर्जिल का बुआई के बाद तथा बीज अंकुरण से पहले 75 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। तदुपरांत बुवाई के 45 दिनों के बाद गुड़ाई करनी चाहिए।
छाछया रोग:- 20 से 25 किलोग्राम गंधक चूर्ण (सल्फर पाउडर) का खड़ी फसल पर भुरकाव किया जाना चाहिये या 0.2 प्रतिशत भीगने वाले सल्फर या 0.1 प्रतिशत डाइनोकेप का छिड़काव करना चाहिए।
झुलसा रोग:- फफूँदनाशक प्रोपिकोनाजोल या डाइफेनोकोनाजोल 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव 15 दिनों के अन्तराल पर किया जाना चाहिए।
उकठा रोग:- उचित फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए। इस रोग से बचाव के लिए बीज को कार्बेण्डाजिम या थायरम या केप्टान की 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। या ट्राईकोडर्मा विर्डी 10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज को उपचारित करना चाहिए। गर्मी में गहरी जुताई एवं मृदा सौरीकरण भी करना चाहिए।
माहू कीट:- माहू कीट नियंत्रण के लिये डायमेथोएट 0.03 प्रतिशत या इमिडाक्लोप्रिड 0.003 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए।
उपज:- 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
प्रमुख बीजीय फसल जीरा की उत्पादन प्रौद्योगिकी