मेथी की उन्नत खेती

Methi Fenugreek
डॉ. जे.आर. पटेल, डॉ. अजीत कुमार सिंह, श्रीमती रोशनी भगत
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़)।
राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र (नेशनल रिसर्च सेन्टर ऑन सीड स्पाइसेस-एनआरसीएसएस), तबीजी, अजमेर - 305 206 (राजस्थान)।
परिचय:- मेथी का वानस्पतिक नाम ट्राइगोनेला फोइनमग्रेसियम है। मेथी की पत्ती सब्जी एवं बीज मसाला के लिए उगाते हैं। इसके बीज में कड़वापन एक कड़वा तेल (फोइटिड) के कारण होती है। इसकी भाजी अत्यंत गुणकारी है जिसकी तुलना कॉड लीवर आयल से की जाती है।
मेथी महत्व एवं उपयोग:- मेथी का उपयोग सब्जियों एवं खाद्य पदार्थों में किया जाता है। इसके औषधीय गुणों के कारण भी इसका उपयोग जोड़ों के दर्द निवारण में, मधुमेह रोग में अंकुरित बीजों के सेवन से लाभ तथा प्रसुता स्त्री को मैंथी के बीजों का दलिया बना कर देने से दुग्ध में वृद्धि होती है। इसका उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में किया जाता है। इसके बीज में डायोस्जेनिंग नामक स्टेरायड के कारण फार्मास्यूटिकल उद्योग में इसकी माँग रहती है।
जलवायु:- मेथी शीतकालीन फसल है। इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है। उष्णकटिबंधी एवं शीतोष्ण जलवायु इस फसल के लिए उचित पाई गई है। इसकी प्रारंभिक वृद्धि के लिए आद्र्र जलवायु तथा कम तापमान उपयुक्त रहता है। फूल बनते समय वायु में नमी और आकाश बादलों से आच्छादित होने पर बीमारी तथा कीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है। फसल पकने के समय ठण्डा एवं शुष्क मौसम उपज के लिये लाभप्रद होता है।
मृदा एवं तैयारी:- बलुई, मध्यम से अधिक भारी या दोमट या बलुई दोमट मृदा, जिसमें कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में हो और जिसका पीएच मान 6-7 है, इसकी सफल खेती के लिए उपयुक्त है। भूमि में जल निकास की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए। खेत साफ स्वच्छ एवं भुरभुरा तैयार होना चाहिए अन्यथा अंकुरण प्रभावित होता है। खेत की अंतिम जुताई के समय क्लोरपाइरीफॉस डालना चाहिए, जिससे भूमिगत कीड़ों एवं दीमक से बचाव हो सके।
बीज की उन्नत प्रजातियाँ:- अजमेर फेन्यूग्रीक-1, अजमेर फेन्यूग्रीक-2, अजमेर फेन्यूग्रीक-3, आर.एम.टी.-143, गुजरात मेथी-2, आर.एन.टी.-305, राजेन्द्र क्रांति, हिसार सोनाली, पूसा कसूरी, कसूरी मैथी इत्यादि उन्नत प्रजातियाँ हैं।
बुआई का समय:- फसल की बुवाई बीज के लिए मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक की जा सकती है।
बीज दर:- सादा मैथी की 20 से 25 किलो बीज प्रति हेक्टेयर तथा कसूरी मैथी 10 से 12 किलो बीज प्रति हेक्टेयर।
बीजोपचार:- बीज को बोने के पूर्व फफूँदनाशक दवा कार्बेण्डाजिम 3 ग्राम या थायरम 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज से उपचारित किया जावे। बीज का उपचार ट्राईकोडर्मा विर्डी 6 ग्राम प्रति किलो बीज दर से तथा राइजोबियम + मेलिलोटाई नामक जीवाणुयुक्त जैव उर्वरक से मेथी के बीजों को उपचारित करने से भी लाभ मिलता है।
बीज बुवाई की तकनीक:- 25 सें.मी. की कतार दूरी पर 10-15 सें.मी. बीज दूरी के हिसाब से करते हैं। बीज की गहराई 5 सें.मी. से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
खाद व उर्वरक:- गोबर या कम्पोस्ट खाद 5-10 टन प्रति हेक्टेयर खेत की तैयारी के समय दें। इसके साथ ही साथ 20-40 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 30-50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस एवं 20-30 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर दिया जाये।
नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस तथा पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा अन्तिम जुताई के समय खेत में मिला देनी चाहिए और शेष मात्रा बुआई के 30 से 60 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में सिंचाई के साथ देनी चाहिए।
सिंचाई:- 4 से 5 सिंचाई 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर मौसम एवं मिट्टी के अनुसार करनी चाहिए। खेत में अनावश्यक पानी के जमा होने से फसल पीला होकर मर जाती है।
निंदाई:- बोवनी के 15 एवं 40 दिन बाद हाथ से निंदाई कर खेत खरपतवार रहित रखें। रासायनिक विधि में पेण्डीमेथिलिन एक कि.ग्रा. सक्रिय तत्व बुवाई के पहले खेत में डाल देना चाहिए। या खरपतवारनाशक ऑक्सीडाइआर्जिल को बीज अंकुरण से पहले तथा बुआई के बाद 75 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। बुवाई के 45 दिनों बाद गुड़ाई करनी चाहिए।
रोग नियंत्रण:- मूल गलन रोग के बचाव के लिए जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विर्डी से बीज एवं मृदा का उपचार करना चाहिए। फसल-चक्र अपनाना चाहिए। 
भभूतिया रोग के लिए कार्बेण्डाजिम 0.1 प्रतिशत एवं घुलनशील गंधक की 0.2 प्रतिशत मात्रा का छिड़काव करना चाहिए। छाछया रोग 20 से 25 किलोग्राम सल्फर पाउडर का खड़ी फसल पर भुरकाव किया जाना चाहिये या 0.2 प्रतिशत भीगने वाले सल्फर का छिड़काव करना चाहिए। झुलसा रोग रोग आने से पूर्व ही मैंकोजेब का 0.2 प्रतिशत या प्रोपीकोनाजोल 0.1 प्रतिशत का 12-15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए। तुलासिता रोग नियंत्रण हेतु कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का 0.2 प्रतिशत या हेक्जाकोनाजोल का 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव रोग की अवस्था के अनुसार किया जाना चाहिए। पत्ती धब्बा रोग मैंकोजेब 0.2 प्रतिशत या कार्बेण्डाजिम 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव रोग की अवस्था के अनुसार किया जाना चाहिए।
कीट नियंत्रण:- माहो/ माहू कीट का प्रकोप दिखाई देने पर 0.03 प्रतिशत डाइमेथोएट और इमिडाक्लोप्रिड 0.003 प्रतिशत का छिड़काव करें। खेत में दीमक का प्रकोप दिखाई देने पर क्लोरपायरीफास 4 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के समय खेत में दें।
कटाई:- जब फसल पीली पडऩे लगे तथा अधिकांश पत्तियाँ ऊपरी पत्तियों को छोड़कर गिर जायें तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए।
उत्पादन:- 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दाना एवं 70-80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पत्तियाँ।