उर्वरक उपयोग जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन
रायसेन। असंतुलित मात्रा में उर्वरकों के उपयोग और नरवाई जलाने से मृदा स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। डॉ. स्वप्निल दुबे, वरिष्ठ वैज्ञानिक व प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र, रायसेन ने उर्वरक उपयोग जागरूकता कार्यक्रम के अवसर पर किसानों को संबोधित करते हुए यह बात कही।
इस अवसर पर दिल्ली में आयोजित उर्वरक उपयोग जागरूकता कार्यक्रम का सीधा प्रसारण कृषकों को दिखाया गया। कार्यक्रम में वैज्ञानिक रंजीत सिंह राघव, प्रदीप कुमार द्विवेदी, डॉ. मुकुल कुमार, आलोक सूर्यवंशी प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
डॉ. स्वप्निल दुबे ने कहा कि वर्तमान समय में असंतुलित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग, कीटनाशक, खरपतवारनाशक, गोबर खाद, नाडेप खाद का उपयोग न करने के कारण व नरवाई को जलाने से मृदा के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है व फसलों का उत्पादन कम हो रहा है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड के विश्लेषण के आधार पर तिलहनी-दलहनी फसलों में सल्फर व धान्य फसलों में जिंक की कमी देखी जा रही है व मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा में भी कमी आ रही है।
वैज्ञानिक रंजीत सिंह राघव द्वारा बताया गया कि कृषकों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड के आधार पर अनुशंसित मात्रा में नत्रजन, स्फुर व पोटाश तत्वों का उपयोग 4:2:1 के अनुपात में करना चाहिए। साथ ही दलहनी व धान्य फसलों में राइजोबियम, पी.एस.बी., एजेटोबैक्टर कल्चर से उपचारित कर फसलों की बुवाई करने की सलाह दी। फसल प्रणाली में धान्य फसलों के साथ दलहनी व तिलहनी फसलों का समावेश कर व गोबर खाद, नाडेप खाद व केंचुआ खाद का उपयोग कर मृदा स्वास्थ्य को संतुलित करने की जानकारी दी गई।
इस कार्यक्रम में कृषकों को संतुलित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग, उर्वरकों के उपयोग का तरीका, जैव उर्वरक सम्बन्धी लघु फिल्म दिखाकर तकनीकी जानकारी दी गई। इस कार्यक्रम में नकतरा, मुगालिया, भूसिमेटा, सोनकच्छ, तेन्दुखोह, आमखेड़ा, सांकल, गुलाबगंज, तरावली, विशनखेड़ा आदि ग्रामों के 137 कृषकों ने भाग लिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में कृषि विज्ञान केन्द्र, रायसेन के वैज्ञानिक पंकज भार्गव व रोहित साहू का महत्वपूर्ण योगदान रहा।