प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता में गिरावट, फसलों में पानी खपत कम करने पर हो जोर: आईसीएआर महानिदेशक
नई दिल्ली। देश में प्रति व्यक्ति वार्षिक पानी उपलब्धता वर्ष 2025 तक घटकर 1,465 घन मीटर रह जाने का अनुमान है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक त्रिलोचन टी. महापात्र ने गुरुवार, 5 सितंबर 2019 को कृषि क्षेत्र में जल प्रबंधन के बारे में मीडिया को जानकारी देते हुए यह बात कही।
श्री महापात्र ने पानी की खपत कम करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग बढ़ाने और फसलों के विविधीकरण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आईसीएआर भारत के लिए फसल योजना के संबंध में सुझाव देने के उद्देश्य से एक तंत्र विकसित करने की ओर ध्यान दे रहा है, जिसके तहत किसानों को यह सुझाव दिया जायेगा कि किस क्षेत्र में किस फसल को उगाया जाए।
महानिदेशक श्री महापात्र ने बताया कि प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता वर्ष 1951 में 5,177 घन मीटर थी जो वर्ष 2014 में घटकर 1,508 क्यूबिक मीटर रह गई है। उन्होंने चेताया, ''पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता वर्ष 2025 तक 1,465 घन मीटर और वर्ष 2050 तक 1,235 घन मीटर तक घटने जाने का अनुमान है। यदि यह और घटकर 1,000-1,100 क्यूबिक मीटर के आसपास रह जाती है, तो भारत को जल संकट वाला देश घोषित किया जा सकता है।''
उन्होंने आशंका जाहिर की कि ऐसी स्थिति में पानी को लेकर राज्यों के भीतर और अलग-अलग राज्यों के बीच लड़ाई बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि कुल बुवाई क्षेत्रफल की कुल 14 करोड़ हेक्टेयर भूमि में से केवल 48.8 प्रतिशत क्षेत्रफल को ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध है और बाकी बारिश पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि कुल 6 करोड़ 83 लाख हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र में से लगभग 60 प्रतिशत भूजल से सिंचित होते है। श्री महापात्र ने कहा, ''कृषि क्षेत्र में पानी की खपत को कम करने की आवश्यकता है। हम कम पानी में भी अधिक उत्पादन कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने प्रति बूंद और अधिक फसल का आह्वान किया है।''
श्री महापात्र ने कहा कि किसी जिले में कितने क्षेत्रफल में कौन सी फसल उगाई जाये, इस तरह की फसल योजना को लेकर सामने आने में लगभग एक वर्ष लगेगा। उन्होंने कहा कि आईसीएआर के दो निकाय- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी शोध तथा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फाॄमग प्रणाली शोध, मोदीपुरम, मेरठ इस फसल योजना प्रणाली पर काम कर रहे हैं। पानी की कमी को एक गंभीर मुद्दा बताते हुए श्री महापात्र ने कहा कि आईसीएआर ने एक जुलाई से 15 अक्टूबर तक अपने खेतों में पानी के सही उपयोग के बारे में किसानों को शिक्षित करने के लिए एक अभियान शुरू किया है। उन्होंने कहा कि कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से पहले ही 10 लाख किसान तक पहुँच बनाई गई है और अन्य 5 लाख किसानों तक पहुँचने की योजना है। उन्होंने कहा कि 90 लाख हेक्टेयर के वर्तमान स्तर से सूक्ष्म सिंचाई के तहत खेती के क्षेत्रफल को दोगुना करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इसे हासिल करने के लिए, किसानों को आगे आना होगा।
त्रिलोचन महापात्र ने कहा कि अत्यधिक सिंचाई से पानी और ऊर्जा दोनों की बर्बादी होती है और इससे उर्वरकों की क्षमता भी कम हो जाती है। फसल विविधीकरण पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, ''फसलों में बदलाव की आवश्यकता है। यदि कम पानी है, तो उन फसलों की खेती की जानी चाहिए जो कम पानी सोखते हैं।'' उन्होंने कम पानी खपत वाले तिलहन, मोटे अनाज और दालों की खेती की वकालत की। पानी आपूर्ति के लिए मीटर लगाने के बारे में पूछे जाने पर, श्री महापात्र ने कहा कि यह निश्चित रूप से निरोधक के रूप में काम करेगा और खपत को भी कम करेगा। लेकिन साथ ही उन्होंने यह कहा कि इस बारे में सरकार को तय करना है।