काली मिर्च की खेती से लिखेंगे ग्रामीण अब विकास की नई इबारत


काली मिर्च की खेती से लिखेंगे ग्रामीण अब विकास की नई इबारत
कोण्डागाँव जिले के ग्राम सल्फीपदर में लगाये जा चुके है 4 हजार काली मिर्च के पौधे
कोण्डागाँव, शनिवार, 7 सितंबर 2019। बस्तर संभाग के सभी जिलों में साल वनों की बहुलता है, किन्तु यह शायद ही किसी ने सोचा होगा कि कोण्डागाँव जिले के अनमोल साल वनों का उपयोग किसी खेती के लिए हो सकता है। वह भी ऐसी खेती जो आने वाले तीन-चार वर्षों में पूरे क्षेत्र के आर्थिक एवं सामाजिक परिदृश्य को बदल देगी। वैसे तो बस्तर के साल वन निश्चय ही स्थानीय निवासियों के लिए 'कल्प वृक्ष' का दर्जा रखते हैं। वनों से क्षेत्र के निवासी अब तक मात्र काष्ठ, वनोपज या अन्य दैनिक घरेलू सामग्रियों के जुटाने का साधन के रूप से करते थे। परन्तु इन सघन पेड़ों का उपयोग को बहुआयामी बनाते हुए स्थानीय निवासियों के जीवन की दशा और दिशा को बदलने वाले प्रमुख आर्थिक संसाधन के केन्द्र के रुप में विकसित करने की योजना बनाई जा रही है। प्रायोगिक तौर पर सालवृक्ष के पेड़ तले काली मिर्च के रोपण को अनुकूल पाया गया है। इस पेड़ के लंबे और विशालकाय तने काली मिर्च की लताओं की बढ़ोतरी में उपयोगी सिद्ध होगी।
कोण्डागाँव जिले के विकासखण्ड फरसगाँव के ग्राम लंजोड़ा के आश्रित पारा सल्फीपदर को जिला प्रशासन ने काली मिर्च की खेती के लिए चयन किया। इसका प्रमुख कारण स्थानीय ग्रामीणों द्वारा ग्राम सीमा के समीप एक हजार एकड़ में फैले हुए प्राकृतिक साल वनों का सुरक्षा एवं संवर्धन का प्रयास करना रहा है। बिना किसी शासकीय प्रयास अथवा दबाव के इस वन ग्राम के निवासियों ने आने वाले पीढ़ियों के भविष्य हेतु ही इन वनों को संरक्षित करके रखा हुआ है। जिसके फलस्वरुप जिले के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा यहाँ के साल वन क्षेत्रफल की दृष्टि से सघन हैं, जिनकी संख्या 59 हजार बताई गई है। 
ग्रामवासियों की माने तो उनके पूर्वजों ने ही इस वनों की सुरक्षा प्रबंधन का आधार रखा है, जिसे वे आज तक निभाते चले आ रहे हैं। वनों के संरक्षण के संबंध में प्रति रविवार ग्राम बैठक होती है जिसमें 72 परिवार में से किसी न किसी सदस्य का शामिल होना अनिवार्य होता है। अवैध कटाई रोकने के लिए सामुहिक प्रयास किया जाता है। वनों की रखवाली के लिए समिति भी बनाई गई है जो नियमित रुप से इन वनों की सुरक्षा के लिए तैनात रहती है।
उत्साहित ग्रामवासियों ने काली मिर्च परियोजना का पुरजोर समर्थन करते हुए अपने विचारों को साझा किया। स्थानीय निवासी बिसरु राम नेताम ने बताया कि हम लोगों ने तो जैसे-तैसे अपना जीवन को गुजार लिया है परन्तु आने वाले पीढ़ी के भविष्य के लिए जी-जान से इस योजना को सफल बनायेंगे। अधिकारियों ने हमें बताया कि वनों का तो आप लोगो ने संरक्षण किया ही है अब इन्हीं वनों से अगर आपको अतिरिक्त आमदनी उपलब्ध कराई जायेगी। इसी प्रकार लखमू राम नेताम नामक किसान ने बताया कि वनों का संरक्षण हमारे पूर्वजों ने प्रारंभ किया था। उससे प्रेरित होकर एवं क्षेत्र में घट रहे वन प्रतिशत को देखकर गाँव के लोगों ने लगातार वनों का बचाने के लिए लगातार बैठकें की। वन बचाने के अलावा इन वनों से हमें अतिरिक्त आमदनी होती है तो यह हमें और हमारे बच्चों के लिए सुुनहरा अवसर होगा। 
गाँव की एक अन्य ग्रामीण महिला लछंतीन नेताम ने बताया कि हम वनों को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। इसके लिए वनों से दातौन अथवा पत्ते-झाड़ियों लाने एवं पशु चराई भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। वन की सुरक्षा के लिए तैनात समिति के सदस्य बारी-बारी से संपूर्ण वन क्षेत्र का निरंतर दौरा करते रहते हैं।
कृषि वैज्ञानिक ने ग्रामीणों को बताया गया कि काली मिर्च के पौधा को पूर्णत: विकसित होने में 2 से 3 वर्ष लग जाते है इसके बाद इनकी लताओं में फल आना प्रारंभ हो जाता है। इस प्रकार प्रत्येक पौधे से 15 सौ रुपये की आमदनी होगी। साथ ही वृक्षों के मध्य की भूमि पर केयूकंद, सेमर, नांगर, शकरकंद, जिमीकंद, कोचई, तिखुर, अदरक, हल्दी जैसे मसाले वाले पौधे भी रोपित किए जा सकते हैं। साथ ही ग्राम के 10-10 एकड़ की खाली भूमि पर केले और पपीते के पौधे भी लगाये जायेंगे ताकि वर्ष के छह महीने के भीतर ग्रामीणों को अतिरिक्त आय का जरिया उपलब्ध कराया सके। इसके अलावा जिला प्रशासन द्वारा स्थानीय ग्रामीणों को तात्कालिक रुप से लाभान्वित करने के लिए सामुदायिक वन अधिकार पट्टे भी दिए जा रहे हैं ताकि ग्रामीण बे-रोक-टोक पौधों का संरक्षण कर सके।
काली मिर्च की खेती से सल्फीपदर गाँव कोण्डागाँव जिले के अलावा राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर भी विख्यात होने के साथ-साथ ही अन्य ग्रामों के लिए एक रोल मॉडल बनने को अग्रसर है। इस दौरान 'न वनों का काटेंगे, न काटने देंगे' एवं 'पेड़ बचाओ भविष्य के लिए' जैसे स्लोगन को ग्रामीणों द्वारा दोहराया जा रहा है। इन ठेठ ग्रामीणों ने सही मायने में पर्यावरण संदेश को आत्मसात करके एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है और भविष्य को बेहतर करने की कोशिश की है।