चावल निर्यात में तगड़ी प्रतिस्पर्धा
नयी दिल्ली, रविवार, 8 सितंबर 2019। भारतीय चावल निर्यातकों को पाकिस्तान और थाईलैंड जैसे एशियाई देशों से लगातार खतरे का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि 2018-19 के खरीफ सत्र में घरेलू धान का उत्पादन 2.5 प्रतिशत बढ़कर 11.5 करोड़ टन से अधिक रहने का अनुमान जताया गया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली के तहत खरीद लागत में लगातार वृद्धि के साथ-साथ किसी दीर्घकालिक चावल निर्यात नीति के अभाव में चावल निर्यात गैर-प्रतिस्पर्धी बन गया है, विशेष रूप से गैर-बासमती चावल निर्यात।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान पाकिस्तान, थाईलैंड और वियतनाम एशियाई और अफ्रीकी क्षेत्रों में मजबूत भागीदार के रूप में उभरे हैं। इस साल भारत को गैर-बासमती चावल निर्यात में गिरावट आने के आसार दिख रहे हैं, जबकि बासमती चावल निर्यात में इजाफे का अनुमान है। हालांकि इसकी दर धीमी रहेगी। भारत के प्रमुख ऑनलाइन लॉजिस्टिक्स बाजार कोगोपोर्ट के अनुसार ऐसे चुनौतीपूर्ण परिदृश्य में मिस्र, चीन, मैक्सिको, मलेशिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस भारतीय चावल के लिए संभावित नए गंतव्य हो सकते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक चावल उत्पादन में गिरावट के आसार हैं क्योंकि अमेरिका, उत्तरी कोरिया और थाईलैंड में फसल कम रहने की संभावना है।
मुंबई के चावल व्यापारी देवेंद्र वोरा ने बताया कि चावल का एमएसपी ऊपर जा रहा है जो वियतनाम, थाईलैंड और पाकिस्तान की खेपों के मुकाबले भारत के चावल निर्यात का मूल्य इसे गैर-प्रतिस्पर्धी कर रहा है। भारतीय चावल निर्यात को पाकिस्तान सहित एशियाई साथियों से खतरा है। उन्होंने कहा कि उचित नीतिगत ढांचे के अभाव को चावल निर्यात की ऊँची विकास क्षमता में बाधा के रूप में जिम्मेदार माना जा रहा है। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली और खाद्य सुरक्षा कारणों से बड़े खाद्यान्न भंडार की व्यवस्था के बावजूद घरेलू धान का उत्पादन हर साल बढ़ता जा रहा।
कोगोपोर्ट रिपोर्ट में राजपुताना राइस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी निखिल सिंह ने कहा है कि पाकिस्तान और थाईलैंड मूल के अधिक गुणवत्ता और सस्ते चावल से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के अलावा तरलता भी एक समस्या है क्योंकि भुगतान में कभी-कभी महीनों लग जाते हैं। राजपुताना राइस हर महीने पश्चिम अफ्रीका में चावल के 100 कंटेनर भेजती है। पहले साया ओवरसीज हर महीने अफ्रीका और खाड़ी देशों को चावल के 60-70 कंटेनर भेजती थी। यह संख्या अब घटकर 40-50 रह गई है। रिपोर्ट में साया के मुख्य कार्याधिकारी विशाल अग्रवाल के हवाले से कहा गया है कि अर्थव्यवस्था में मंदी आ रही है और अन्य देशों की ओर से कड़ी प्रतिस्पर्धा है। पाकिस्तान, थाईलैंड और वियतनाम बेहतर दामों की पेशकश कर रहे हैं। चूककर्ताओं के कारण नुकसान भी होता है।
इस बीच कोगोपोर्ट के सह-संस्थापक कुणाल राठौड़ ने कहा कि भारतीय निर्यातकों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि चीन कम कीमत वाले चावल का निर्यातक हो गया है, जबकि गैर-बासमती चावल पर अधिक शुल्क के कारण भारत से बांग्लादेश को किए जाने वाले निर्यात की संभावनाओं के सामने खतरा पैदा हो गया है। उनका सुझाव है कि भारतीय निर्यातकों को मैक्सिको जैसे नए बाजार तलाशने चाहिए जो अब अमेरिका की आपूर्ति पर कम निर्भर है। मिस्र जैसे देश भी संभावित नए बाजार हो सकते हैं जहाँ सस्ते एशियाई चावल की उपलब्धता से घरेलू आपूर्ति की कमी को पूरा किया जा सकता है, जबकि चीन, मलेशिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देश प्रमुख चावल आयातक बने हुए हैं और इन्हें लक्ष्य बनाया जा सकता है।
चावल निर्यातक संघ के उपाध्यक्ष राकेश कुमार सिंह के अनुसार हालांकि भारत पश्चिम अफ्रीका में चावल निर्यात में एक मजबूत भागीदार है, लेकिन देश को चीन, मलेशिया और फिलीपींस जैसे नए बाजारों को लक्ष्य बनाना चाहिए। भुगतान की चुनौतियों से बचने के लिए निर्यातकों को 10-20 प्रतिशत अग्रिम भुगतान पर जोर देना चाहिए क्योंकि पेशगी में मिला कुछ पैसा खरीदार को चूक करने से रोकेगा।
चावल निर्यात में तगड़ी प्रतिस्पर्धा