बाँस से निर्मित वस्तुएँ आजीविका का अच्छा साधन हो सकती हैं: डॉ. बिसेन

ग्राम कोपे एवं लोहारा में बाँस प्रसंस्करण पर ग्रामीण महिलाओं को दिया रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण
बालाघाट। बाँस से निर्मित वस्तुएँ आजीविका का अच्छा साधन हो सकती हैं। डॉ. नरेश बिसेन, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, बालाघाट ने यहाँ गुरुवार, 26 सितम्बर 2019 को बाँस पर आयोजित एक कार्यशाला में मुख्य अतिथि की आसंदी से यह विचार व्यक्त किए।
'कृषक महिलाओं की नई पहल बाँस से उद्यमिता का सफल आयोजन' विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में ग्राम कापे एवं लोहारा की लगभग 50 ग्रामीण महिलाओं ने भाग लिया एवं बाँस प्रसंस्करण से संबंधित प्रशिक्षण प्राप्त किया। डॉ. बिसेन ने महिला कृषकों को बाँस उद्यमिता से जुड़ने की सलाह दी व महिला सशक्तिकरण में इसकी भूमिका स्पष्ट की।
हेमराज मेश्राम व उनके सहयोगी बाँस प्रसंस्करण इकाई, बालाघाट से मास्टर ट्रेनर के रूप में उपस्थित रहे, जिन्होंने विभिन्न प्रयोगिक कार्य जैसे बाँस के आभूषण, ट्रे, टोकरी, फ्रेम, घड़ी इत्यादि बनाना सिखाया व इनके लिए उपलब्ध बाजार की विस्तृत जानकारी दी।
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. प्रतिभा बिसेन द्वारा किया गया। सहायक प्रोफेसर, कृषि विस्तार श्रीमती अपर्णा जायसवाल (को.पी.आई -फार्मर फर्स्ट) ने प्रशिक्षणार्थियों का प्रशिक्षण पूर्व एवं पश्चात् मूल्यांकन किया। कार्यक्रम के आयोजक के रूप में सहायक प्रोफेसर कीटविज्ञानी डॉ. (श्रीमती) धारणा बिसेन (को.पी.आई-फार्मर फर्स्ट) एवं डॉ. ऋचा सिंह ने योगदान दिया।